2/17/2007

बहुत सारे तमाशों के बीच बहुत सुरीला संगीत

किच, कलर और नंगी भावनाओं का पेंटर: पेद्रो अलमोदोवार

पिछली सदी के उत्‍तरार्द्ध में बडी लडाई के बाद यूरोपीय समाज के संग-संग यूरोपीय सिनेमा का जो चेहरा बदलना शुरु हुआ, उसमें स्‍पेन की उपस्थिति कहीं नहीं थी. इटली के न्‍यू रियलिज़्म और फ्रांस के न्‍यू वेव और जर्मनी के न्‍यू सिनेमा के हस्‍ताक्षरों ने उनकी अंतर्राष्‍ट्रीय पहचान बनाई, मगर तीन दशकों के इस लंबे अर्से में स्‍पानी सिनेमा का बस दो नाम लोगों की स्‍मृति पर चढा था: लुई बुनुएल और कारलॉस साउरा. बस. इसके आगे? इल्‍लै.

अस्‍सी के आखिर की तरफ इस उनींदे, बोझिल परिदृश्‍य में स्‍पेन की ओर से एक नाटकीय हस्‍तक्षेप हुआ. स्‍पेन की एक फिल्‍म ‘अ वुमेन ऑन द वर्ज ऑव नर्वस ब्रेकडाउन’ विदेशी फिल्‍मों वाली श्रेणी में नामांकित होकर ऑस्‍कर (1988) पहुंची थी. फिल्‍म के तीखे, चुटीले संवाद और भडकीले रंगों की लयकारी, चरित्रों की आंतरिक दुनिया की एक ऐसी उठा-पटक जिसे लोगों ने अपने जीवन में जीना शुरु तो कर दिया था, मगर वह कैमरे की जबान में अनुदित होकर अभी पर्दे तक पहुंची नहीं थी. फिल्‍म ने एकदम से लोगों का दिल जीता और फिल्‍मकार के प्रति लोगों की जिज्ञासा बढी. फिल्‍मकार थे पेद्रो अलमोदोवार.

डॉन किहोते के कारनामों की पृष्‍ठभूमि के एक साधारण, गरीब परिवार में जन्‍मे अलमोदोवार के आस-पास कोई सांस्‍कृतिक शिक्षण का माहौल नहीं था. खुद पेद्रो के पिता अंतोनियो लिखना-पढना नहीं जानते थे, गधे की पीठ पर वाईन बैरेल ढोकर आजीविका चलाते थे. मां फुरसत में लोगों के खत पढने और लिखने के काम से घर में कुछ पैसे और जोडती थी. मां-बाप ने नन्‍हें पेद्रो को पादरियों के स्‍कूल में दाखिल करवाया. अपने बच्‍चे को वह पादरी बनाना चाहते थे. मगर पेद्रो की नसों में सिनेमा का ज़हर चढ चुका था. घरवालों का दिल तोडकर वह 1967 में मैड्रिड भाग आये. यह साठ की चहल-पहल और बेशुमार गतिविधियों वाला मैड्रिड था. खुराफाती मगर एक्‍स्‍ट्रीमली फॉकस्‍ड पेद्रो के पैर जमाने की आदर्श जगह. और बावजूद एक पिछडे प्रांत से आने के, शहर के सांस्‍कृतिक परिदृश्‍य में पेद्रो ने धीमे-धीमे अपनी उपस्थिति दर्ज करनी शुरु कर दी. एक पंक-रॉक बैंड के लिए पै‍रोडियां गाईं, काटूर्न और कॉमिक्‍स लिखे, और राष्‍ट्रीय फोन सेवा की बारह साल लंबी अपनी नौकरी में दोपहर तीन बजे खाली होकर अपने फिल्‍मी कीडों की व्‍यवस्‍था में पूरे दमखम के साथ लग गए (फ्रांको ने स्‍पेन का फिल्‍म स्‍कूल बंद करवा दिया था, चुनांचे पेद्रो को खुद से ही शिक्षित होना था). तनख्‍वाह से सुपर 8 का कैमरा खरीदकर अपने प्रयोग शुरु किये, छोटी फिल्‍में बनाईं, और ढेरों बनाईं. उसको घूम-घूमकर मैड्रिड के बार और कफै में दिखाते. जल्‍दी नाम कर लिया. 8 से 16 में शिफ्ट हुए, और फिर अपनी दोस्तियों के जुगाडू कौशल से बडी फीचर्स की दुनिया में.

अलमोदोवार की पहली बडी फिल्‍म 1980 में बनकर तैयार हुई- पेपी, लुची, बॉन एंड अदर वुमेन ऑन द हीप. फिल्‍म ने खुलकर अपने समय की सांस्‍कृतिक और यौन स्‍वतंत्रता को जगह दिया. किच और प्रोवोकेशन के उस्‍ताद अलमोदोवार ने खुराफाती ह्यूमर और भडकाऊ सैक्‍स के इस्‍तेमाल से तत्‍काल अपनी एक कल्‍ट फॉलोइंग खडी कर ली. नंगे इमोशंस और जानलेवा इच्‍छाओं के बीच फंसी पहचानों को लिये घूमते चरित्रों की यह रंग-बिरंगी दुनिया धीरे-धीरे और मंजती और परिष्‍कृत होती गई. पेपी, लुची से शुरु हुई कडी में अबतक सत्रह फिल्‍में और जुडी हैं. थोडी बहुत आंख खुली रखनेवाले बंधुओं को 1999 में ‘ऑल अबाउट माई मदर’ के ऑस्‍कर की याद होगी. उसके बाद अलमोदोवार ने सेंसेशनल ‘टॉक टू हर’ बनाई, ‘बैड एजुकेशन’ की सिक्रेट, डिस्‍टर्बिंग दुनिया रची, और अभी पिछले वर्ष पैनेलुप क्रुज के स्‍पानी सिनेमा में पुनर्वापसी के मीडियाई हो-हल्‍ले के बीच धीमी, सुलगती ‘बोल्‍वर’ तैयार हुई.

ऊपर अपने चहेते एक्‍टर गायेल गार्सिया बेरनाल के साथ अलमोदोवार

अलमोदोवार पर विशेष सामग्री के लिए यहां देखें.

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