3/08/2007

तानाशाह का काला चेहरा

द लास्‍ट किंग ऑफ स्‍कॉटलैंड

कुछ समय पहले हमने ऑल द किंग्‍स मेन की चर्चा की थी. कि कैसे सत्‍ता एक भले-भोले आदमी को बर्बर और निरंकुश जानवर में बदल डालती है. ‘द लास्‍ट किंग ऑफ स्‍कॉटलैंड’ उसी सवाल की एक दूसरी तरह की पडताल है. यहां अब वह महज़ नैतिक आग्रहों की पडताल की बजाय अफ्रीका में अंग्रेजी उपनिवेशवाद के जबडों से उपजे भूगोल विशेष के आर्थिक-राजनीतिक सीमाओं की पहचान की रुपरेखा बुनती है. इसलिए भी एक काल्‍पनिक डॉक्‍टर की वास्‍तविक घटनाओं के गिर्द रची किताब पर आधारित फिल्‍म इदी अमीन के जीवन पर ही टिप्‍पणी नहीं है, यह जाने-अजाने उस सामाजिक-ऐतिहासिक द्वंद्व का भी अन्‍वेषण है जिसने बीसवीं सदी के अफ्रीका को ऐसे उलझे, और पश्चिमी नज़रों में ‘कैरिकेचरिश’ अमानवीय तानाशाह दिये हैं.

फिन्‍म का आरंभिक आधा घंटा एक लिबरल, आइडियलिस्‍ट स्‍कॉटिश नौजवान डॉक्‍टर की नज़रों से युगांडा को देखना- ललिया मिट्टी की सडकें और हरे मैदानों का विस्‍तार- काफी लुभावना बना रहता है. बाद में जैसे-जैसे फिल्‍म का कथ्‍य जटिलताओं में उतरता है, आज की ब्रिटिश फिल्‍ममेकिंग की सीमायें उसके रास्‍ते आडे आने लगती हैं. खामखा का नाटकीय संगीत और संपादन कभी-कभी भ्रम जगाता है मानो हम कोई हिंदी फिल्‍म देख रहे हों. मगर फॉरेस्‍ट विटेकर समेत बाकी एक्‍टरों का काम अच्‍छा है, और बंद, पिछडे मुल्‍कों की तानाशाही की एक अच्‍छी झलक हमें देखने को ज़रुर मिलती है. डॉक्‍यूमेंट्री बनाते रहे केविन मैकडॉनल्‍ड की यह पहली फीचर फिल्‍म है.

No comments: