8/20/2007

जर्मनी ईयर ज़ीरो

साल: 1948
भाषा: इतालवी
डाइरेक्टर: रॉबर्तो रोस्सेलिनि
अवधि: 71 मिनट
रेटिंग: ****

रोस्सेलिनि नियो रियलिस्ट सिनेमा के बड़े हस्ताक्षर हैं. रोम ओपेन सिटी और पैसान के साथ यह फ़िल्म उनकी युद्ध त्रयी का आखिरी भाग है.

दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो चुका है. जरमनी खण्डहर बन चुका है. उस पर विजेता अलाइड फ़ोर्सेज़ काबिज़ हैं. जिनके घर नष्ट हो गए हैं वे सरकार द्वारा दूसरों के घरों में ठूँस दिए गए हैं. ऐसे ही एक छोटे से परिवार की कहानी है यह फ़िल्म. फ़िल्म की क्रूर और नंगी सच्चाई को हम 12 साल के एदमन्द की आँखों से देखते हैं. पिता बीमार हो कर खाट पकड़े हुए है. नाज़ी सेना का लड़ाका रह चुका भाई छुप कर रहा है. डरता है कि उसे डण्डित किया जाएगा. चार मुँह भरने की जिम्मेदारी बड़ी बहन पर है जो रातों को एलाईड फ़ोर्सेज़ के सैनिकों के दिल बहला कर कुछ कमाई करती है. और एदमन्द पर जो कम उमर होने पर भी कब्रें खोद कर और काला बाज़ार में घर का सामान बेच कर अपने परिवार की अस्तित्व रक्षा करना चाहता है. हालात कठिन हैं. पर एदमन्द सीखने को तैयार है. वह अपने पुराने शिक्षक के द्वारा कामुक पुचकार भी सहने को तैयार है, अगर कुछ कमाई होती हो. मगर पिता का दर्द और परिवार की भूख उस से देखी नहीं जाती.. और वह कुछ ऐसा अप्रत्याशित कर बैठता है जो शायद पूरी जर्मन जाति द्वारा अपने इतिहास को नकारने के प्रतीक तुल्य है.

बिना किसी भावुकता के फ़िल्माई यह श्याम श्वेत फ़िल्म आप को अन्तर को गहरे तक चीरती चली जाती है और कुछ मूलभूत सवाल खड़े करती है.

- अभय तिवारी

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